प्रगतिवादी समीक्षक डा0 नामवर सिंह और उनका समीक्षाकर्म
Abstract
नामवर सिंह अपने समय के सबसे विवादास्पद आलोचक हैं। पिछले तीन दशकों से उनकी ओलचना लगातार विवादों के केन्द्र में है। स्वयं उनकी आलोचना की प्रकृति भी यही रही है। वे इसे आलोचना का स्वधर्म मानते हैं। उनके अनुसार आलोचना वाद विवाद संवाद नही तो और क्या है ? लेखक आलोचक के बीच। आलोचक के बीच। अपनी आलोचना के इसी विवादी स्वर के कारण वे बराबर चर्चाओं के केन्द्र में रहे हंै। यद्यपि लिखा तो उन्होंने अपभ्रंश से लेकर आज तक के साहित्य के बारे में है पर ख्याति मिली है उन्हें नये साहित्य पर। यदि हर युग अपने बीच से समीक्षक पैदा करता है तो कहा जा सकता है कि नामवर सिंह स्वातंत्रयोत्तर साहित्य के आलोचक हैं इसी साहित्य से वे सबसे ज्यादा टकराते है। बिना वाद विवाद के उन्हें आलोचना में शायद मजा नहीं आता। वे सबसे पहले एक पक्ष को खड़ा करते हैं और फिर उनके विरोध में अपने तर्क शास्त्र देते है। कविता के नए प्रतिमान और दूसरी परम्परा की खोज में उन्होंने खास तौर से ऐसा ही किया है। माक्र्सवाणी पद्धति का अनुशरण करने के कारण डाॅ0 सिंह समाजवादी पद्धति की समीक्षा-दृष्टि को अपनाया। कला और साहित्य को समाज के सन्दर्भ में अन्योन्याश्रित रूप में देखा।
How to Cite
डाॅ. रमेा प्रसाद. (1). प्रगतिवादी समीक्षक डा0 नामवर सिंह और उनका समीक्षाकर्म. Academic Social Research:(P),(E) ISSN: 2456-2645, Impact Factor: 6.901 Peer-Reviewed, International Refereed Journal, 7(2). Retrieved from https://asr.academicsocialresearch.co.in/index.php/ASR/article/view/516
Section
Articles